Sunday, July 16, 2017

दिल्ली अब मुँह खोला जाये

नते  बिगड़ते  बवालों  में , नेताओं  के  चालों  में,
दुनिया भर के सवालों में , दिल्ली फँसी घोटालों में। 

कॉमनवेल्थ की आड़ में , कॉंग्रेस की सरकार में ,
कलमाडी  की  वार  में  , दिल्ली दबी बेकार में।        

खेलों  की  तैयारी  में  , वक्त  की  मारामारी  में,
लालच  की  बीमारी  में , दिल्ली गई लाचारी में। 

भारत माँ के आनों पे , मक्कारी भरे बहनों पे,
ताले लगे जुबानों पे , दिल्ली के मुस्कानों पे।                                                     

जनता थी भोलेपन में , मैल भरा उनके मन में,
लगे खेलने वो धन में , दिल्ली के ही आँगन में। 

अरबों में और खरबों में , नेताओं के तलबों में,
रंग – बिरंगे जलबो में , दिल्ली खरी है मलबों में। 

आँखों में आंसू भरके , कितनों को बेघर कर के,
खेला किये वो बढ़ – बढ़ के, दिल्ली चुप हुई डरके। 

रही खबर बस कानों में , हँसते गाते मेहमानों में ,
टेबल – कुर्सी खानों में , दिल्ली सजी दुकानों में।  

झूट दबे सच बोला जाये, देशभक्ति रस घोला जाये ,                           
बेईमानों को तोला जाये , दिल्ली अब मुँह खोला जाये।

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