Sunday, July 16, 2017

जमाना बुरा है

मैं भी  भली  हूँ  और  तू  भी  भला  है , फिर क्यूँ  कह रहे  हो  जमाना  बुरा है, 

जो  हम तुम  निभाते रहे कसमें -वादे  , क्यों  हो  बेवफाई  ये  धोखा  कहाँ  है।                                               
                                                                                               
जमाने  को  मुजरिम  कहे  जा  रहे हो , जमाना  तो  हमसे और तुमसे  बना  है,
हम  में  से   ही  कोई   गद्दार   होगा   ,  जमाना  बेचारा  बेवजह  पीस  रहा  है। 

बुरे  पे   अच्छाई  का  पानी   चढ़ाके   , दमकता  चमकता  हर  इक  चेहरा   है, 
मिलावट  की  इतनी  बुरी लत  पड़ी है , है  ईमान  कम  ज्यादा  धोखा  भरा  है। 

छुपाते  रहे  अपनी  कमजोरियां   हम  , जमाने  को  हम  ने  बुरा  कह  दिया  है,
हमें  है  पता  वो  न  शिकवा   करेगा  ,  तभी  नाम  बदनाम  उसका   किया   है। 

जो झाँका किये एकदिन दिल के अंदर , तो  देखा  की  भगवान  सोया  पड़ा   है, 
जगाया  बहुत उनको पर  वो  न जागे , हुई  ये  खबर  की  वो  हमसे  खफा   है। 

ये पूछा जब हमने बताओ बस इतना  , भला  हमसे  ऐसी  हुई  क्या  खता   है ,
वो  कहने  लगे  पूजते  तुम  मुझे  हो , मगर  तुझमे  आदत  सब शैतान का है। 

बनाया  है  मैंने  ही  सबको  जहाँ  में , मगर  सब  मुझे  ही  बनाने  लगा  है ,
समझने  लगा है बड़ा खुद को मुझसे , मेरी  रहमतों  को  भुलाने   लगा  है। 

वाकिफ  हूँ  मैं  तेरी  हर एक नस से , नासमझ फिर भी मुझसे छुपाने लगा है, 
करता है कम और दिखता है ज्यादा , बहुत  दूर  मुझसे   तू   जाने  लगा  है। 

बदल अपनी आदत बना पाक दिलको , मिटा दे भरम वो जो तुझमें  भरा  है, 
संभलने  का  तू  आज  संकल्प  करले , भुला  दूंगा  मैं भूल मेरा दिल बड़ा है। 

मतलब - परस्ती  फरेबी  में  पड़  के  , खुद  को  ही  धोखा दिए  जा रहा  है,
बुराई  को  अपनी  मिटाता  नहीं   है   , कहता  है  सबको  जमाना  बुरा  है। 

No comments:

Post a Comment