Wednesday, April 16, 2014

मैं और तूफान

कुछ डूब गए कुछ पार हुए पर मैं मझधार में पड़ा रहा ।
कुछ गए नही कुछ भाग गए पर मैं तूफां में खड़ा रहा ।

इक हाथ मेरे पतवार रही इक हाथ नाव को पकड़ रहा ,
कभी नाव पानी से भरी रही कभी मैं साहस से भरा रहा ।

सागर में उठता भँवर बड़ा मुश्किल नाव का सफर रहा ,
तूफां ने भी जिद ना छोड़ी मैं भी अपने जिद अड़ा रहा ।

ये सफर अभी भी बांकी है ये जंग अभी भी जारी है ,
कभी तूफां मुझसे जीत रहा कभी मैं तूफां को हरा रहा ।

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