Monday, March 17, 2014

प्रेम के रंग

छुप - छुपाये कान्हा जाये रंग डारि गोपियां ,
तन भिगोये मन भिगोये अंग -अंग ही रंग दिया ।

रार करती खेल करती छिनती है बंसुरिया  ,
कान्हा कहते जाने दो पर मानती ना गोपियां ।

जाने दो मुझको कि चाहे ले लो मेरी बंसुरिया ,
राधा रूठ न जाये मानो बात मेरी गोपियां ।

इस तरफ कान्हा के संग - रंग खेलती सब गोपियां ,
उस तरह जमुना किनारे रो रही थी राधिका ।

बच -बचाके दौड़ते आये रंगाये श्याम जब ,
रंग से कान्हा रंगाये आंसुओं से राधिका ।

कह रहे थे श्याम कैसे जाल में थे फंस गये ,
हिचकियां ले - ले के प्यारी रो रही थी राधिका ।

पूछती राधा बताओ मैं रंगू तुमको कहाँ ,
एक भी जगह न छोड़ी रंगने को गोपियां  ।

 मेरे तो बस एक तुम सारे जहां से पूछ लो ,
और तुम्हारी जाने हैं कितनी हजारों गोपियां ।













श्याम ने समझा कि अब तो बात बिगड़ी कई गुणा ,
मानती भी ना है बस रोती ही जाती राधिका ।

एक ही झपकी में कान्हा ने रचाया खेल वो ,
आंसू बहते कृष्ण के ही जब भी रोती  राधिका ।

देख के कान्हा के आंसू हो गई बेचैन राधा ,
भूलकर नाराजगी फिर दौड़ी आई राधिका ।

प्रेम का ये दाव उल्टा इस तरह से हो गया ,
रो रही थे कृष्ण और समझा रही थी राधिका ।

वृन्दावन का कोना - कोना भीगा था इस रंग में ,
राधा के रंग श्याम भीगे श्याम के रंग राधिका ।





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