Saturday, February 8, 2014

मुहब्ब्त है , नही

शोर है कितना मुहब्ब्त है , मुहब्ब्त है नही । 
फूल और तोहफे सजावट है , मुहब्ब्त है नही । 

ले चलो उस पार कि जिस पार हो दिल का जहाँ ,
इस जहाँ में है तो नफरत है मुहब्ब्त है नही । 

मुस्कुराहट में भी कितनी बात, कितनी घात है ,
आशिकी में भी बनावट है , मुहब्ब्त है नही । 

मैं खफा न हूँ तो तुम मेरी रजा मत मान लो ,
ये मेरे दिल कि शराफत है , मुहब्बत है नही । 

मांगने तक ठीक था अब छीनने पर आ गये ,
ये तो वहशत है बगावत है , मुहब्ब्त है नही । 

अपने बंदों को भी तू देता नही अपना पता ,
ये खुदा कैसी इनायत है , मुहब्ब्त है नही । 

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