Thursday, January 16, 2014

मेरी तकदीर में लिखा ही न था

मेरी तकदीर में लिखा ही न था ,
तू मेरा होके भी मेरा ही न था ।

मैंने समझा मैं तेरे दिल कि लगी ,
दिल्लगी थी ये, दिल लगा ही न था । 

ख़ामख़ा खाब सजाने में रात बीती थी ,
जाग के देखा कुछ हुआ ही न था ।

डोलती रह गई किनारे पे ,
दूर जाना था रास्ता ही न था ।

खेली बाजी वो हारती ही रही ,
जाने क्यूँ हमको जितना ही न था ।

इक तुझे मांगने के बाद सनम ,
मांगने को भी कुछ बचा ही न था ।

मैं तेरी राह में खड़ी थी मगर ,
तू मेरे रास्ते चला ही न था ।

तू किसी और कि दुआओं में था ,
तू मेरे वास्ते बना ही न था । 

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