Saturday, January 18, 2014

माँ कि बोली

सूरज - चाँद - सितारों से भी ज्यादा भोली लगती है ,
माँ कि कड़वी बातें भी मुझे मीठी गोली लगती है ।

माँ जब रूठ के कहती हैं जा मुझसे बात ही मत करना ,
माँ के गुस्से में मुझको इक छिपी ठिठोली लगती है ।

कभी बिमारी में जब कोई दवा असर कम करता है ,
माँ कि दुआ से भरी- पूरी तब मेरी झोली लगती है ।

मंदिर - मस्जिद सब के सब मिलते हैं माँ कि आंचल में ,
कीर्त्तन और अरदास से प्यारी माँ कि बोली लगती है ।







No comments:

Post a Comment