Sunday, October 6, 2013

ऐ इश्क चला जा

ऐ इश्क चला जा मुझे तेरा दर न चाहिए ।
तेरे दर्द में डूबा हुआ सफर न चाहिए ।

धरती पे भी सो लेंगे हो गर नींद आँख में ,
नींदें गंवाके फूलों का बिस्तर न चाहिए ।

मेरे होश मेरे खाब मेरा चैन देके जा ,
मुझको दिल बेवजह का बेसबर न चाहिए ।

इक बार तेरा होके मैंने देख लिया है ,
इल्जामें-इश्क फिर से मुझे सर न चाहिए ।

सब कुछ लुटा दिया मगर न तू हुआ हासिल ,
सुन बेवफा मुझे तुझसा हमसफर न चाहिए ।

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