Tuesday, October 22, 2013

भारत माँ की दुविधा

झूठे बैठे डिंग हांकते हवा में लेते बाजी मार ।
सच्चाई पे चले जो उनपे तोहमत लगते रोज हजार ।

गोरा धन है काल होकर पड़ा हुआ विदेशों में  ,
भारत का रथ चला रहे हैं चोर उचक्के और गद्दार ।

आतंकवादी घुसे जा रहे रातों को अँधेरे में ,
बड़े मौज से ऊँघ रही है कुर्सी के उपर सरकार ।

भारत माँ की नैया हमने दे दी किसके हाथों में ,
मांझी ही बेइमान निकल गया हुआ देश का बन्टाधार ।

हमने भी कोई कसर न छोड़ी वो भी लूटे हम भी लूटे ,
राष्ट्रप्रेम का हलवा बन गया देशभक्ति का बना आचार ।

इतने अंधे हुए स्वार्थ में भारत माँ को भूल गये ,
याद रहा बस इतना हमको लाभ मुनाफा और व्यापार ।

रही भारती आस लगाये जाने कब दिन लौटेंगे ,,
भगत , बोस , गाँधी आयेंगे कब करने सपने साकार । 

2 comments:

  1. इतने अंधे हुए स्वार्थ में भारत माँ को भूल गये ,
    याद रहा बस इतना हमको लाभ मुनाफा और व्यापर ...
    सच कहा है .. आज सभी का ये हाल है देश में ... काश कुछ समय देश की भी सोच सकें तो कुछ सुधार आ जाए ...

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  2. जी हाँ दिगम्बर नासवा जी , चिंता तो सब करते हैं चिंतन कोई नही

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