Sunday, May 26, 2013

जनता है फिर उलझन में

पूछा गया जब उनसे सच हालात के ऊपर ,

परदा वो डालते मिले हर बात के ऊपर  ।

मसला हो जब आवाम का निकले कहाँ से हल ,

हंगामा बड़ा बरपा आधी रात के ऊपर ।

वो क्यूँ नही खुशहाली चाहते हैं देश की ,,

उतरते नही खड़े क्यूँ अपनी बात के ऊपर ।

दिखाती नही गरीबी बेबसी गरीब की ,

एनक लगा हुआ है सबकी आँख के ऊपर ।

चुनाव आने को है फिर निकले रंगे सियार ,

गाते हैं गीत अपने करामात के ऊपर ,

जनता है फिर उलझन में मुहर किस पे लगाये ,

बुडे हालात के उपर या उनके हाथ के ऊपर । 

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