Sunday, April 21, 2013

इश्क खरीदारी हो गई

रात भर जागी हमारी आँख भारी हो गई ।
और वो समझे हमें , कोई बिमारी हो गई ।

कौन बोल इश्क है ये , काम भी तो है बहुत ,
बेवजह हल्ला मचाया , इश्कदारी हो गई ।

फेर कर वो चल दिए ,  नजरें हमारी ओर से ,
उनका तो ये खेल था , आफत हमारी हो गई ।

तबतलक मिलते थे वो , जबतक जरूरत थी मेरी ,
अब जरूरत है हमें , कहते हैं यारी हो गई ।

सोचते हैं क्या मिला, कितना मिला, कैसे मिला ,
इश्क जैसे न हुआ , कुछ खरीदारी हो गई । 

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