Friday, March 8, 2013

तूफान और मैं

हर बार जब तूफ़ान घर उजाड़ कर  गया ।
मैंने जहाँ बसा लिया पहले से भी नया ।

टूटी मेरी कस्ती मगर ,  टूटा  न हौसला ,
मैं हार जब न मानी तूफां  , हार कर गया ।

जाते हुए कहने लगा , कुछ बात है तुझमे ,
हर बार मेरा वार तू  ,  बेकार कर गया ।

ठोकर लगाई इतनी   ,  तुझे तोड़ न पायें ,
ले जाते - जाते हार मैं  , स्वीकार कर गया ।

मैं बोली , कहा किसने , की दुश्मन हो तुम मेरे ,
ऐ दोस्त तू तो मुझपे कई ,  उपकार कर गया ।

पता बता गया तू मुझको  , मेरे हुनर का ,
उजाड़ने आया था पर , संवार कर  गया । 

कहने लगा तेरी यही ,  'अदा ' पसंद है ,
ले दर पे तेरे दिल भी अपना , हार कर गया ।

तूफ़ान ने  भले ही   ,  बिगाड़ा था बहुत कुछ  ,
लेकिन वो जाते -जाते फिर , बहार कर गया ।  

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