Saturday, January 5, 2013

दिवानी सी हालत मेरी

रोज  किनारों  से  टकराकर , हार कहाँ  मानी  है अब तक  , 
प्यार में पागल साहिल के , लहरों का ये पागलपन देखो ।

उसी खाब को देख - देख के , रोज सुबह से शाम किया है ,
वही  नही  अब  पूरा  होगा  ,  रहा  अधूरा  जीवन  देखो ।

किस्मत से कब तक रुठेंगे , कब तक गिला करेंगे यूंही ,
वक्त अड़ा है साथ अड़े हम  , खत्म न होता  अनबन देखो ।

खतावार हम किसको बोले , दुनियां को या अपने दिल को ,
वर्षो में न सुलझी गुत्थी  ,  कैसी  उलझी  उलझन  देखो ।

उसी प्यार की आस में जाने , कितने मौसम बित गये हैं ,
बरसो ,अब तो बरसों बीते , सूना मन का आंगन देखो ।

इक- इक पल सदियों के जैसी , हर लम्हा काँटों के जैसा ,
दिवानी  सी हालत मेरी  ,  आ जाओ अब साजन  देखो ।

No comments:

Post a Comment