Saturday, December 29, 2012

दोस्ती

जब भी उठे है हाँथ मेरे  ,करने को दुआ ,
माँगा यही हर बार, बस इतना ही दे खुदा ।

मेरी जिन्दगी के साथ मेरी दोस्ती रहे ,
मरने के बाद भी न हो दिल से मेरे जुदा ।

वो नादानियाँ करे तू जो माफ़ी न दे सके ,
मेरे हिस्से में लिख देना उसकी सभी सज़ा ।

वो भूल भी जाये मुझे  उसे मैं नही भूलूं ,
चुपचाप दोस्ती का हक करती रहूँ अदा ।

मन्दिर में मस्जिद में क्या बन्दगी करूं ,
अब दोस्त इबादत है और दोस्ती  खुदा ।


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