Monday, December 17, 2012

गुमसुम रहूँ तो

गुमसुम  रहूँ  तो ,  हंसाते  हैं  पहले ,
हंसू जो तो कहते हैं , हंसती हो ज्यादा ।

गुस्सा दिलाते हैं  ,  नादानी करके ,
फिर ये गिला की , बरसती हो ज्यादा ।

नाराजगी में  ,  मनाते तो है पर ,
शिकायत ये भी की , अकड़ती हो ज्यादा ।

नही छोड़ते हैं  ,  सताने की आदत ,
लडूं जो तो , कहते हैं लडती हो ज्यादा ।

मैं कह दूँ अगर की  , मुहब्बत नही है ,
कहेंगे हसीं पे ,  बिगडती  हो  ज्यादा ।

वफाओं में उनकी  ,  बनावट नही है ,
इसी बात से , उनपे मरती हूँ ज्यादा ।

2 comments:

  1. वाह क्या बात है लाजवाब प्रस्तुति बहुत खूब

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