Monday, November 26, 2012

चमन फिर से खिल उठे

बरबादियों के गीत अब  , अच्छे नही लगते ,
कोई प्रेम गीत गा , की सुमन फिर से खिल उठे ।

अँधेरा  करके  तूफां  ने ,  अच्छा  नही  किया ,
अब तू ही कर , अच्छा की चमन फिर से खिल उठे ।

बेचारगी  ने  ,  पानी  बना  डाला  खून  को ,
जला तू आग , दिल में अगन फिर से खिल उठे ।

नजरे  जमाये  बैठा  है  ,  इतिहास आज पे ,
बदलाव ला  ,  उदास नयन फिर से खिल उठे ।

सो  गई  दिलों  में  ,  देश - प्रेम  दोस्तों  ,
लगायें वो लगी , की लगन फिर से खिल उठे ।

कोई  तो  स्वार्थ  भूल  के  , आगे  को  आएगा ,
लानी है  वो ख़ुशी , की चमन फिर से खिल उठे ।

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