Tuesday, November 20, 2012

उसी में सूरज भी इक छिपा है

रोज शाम को जलता है वो ,
ऐसे  जैसे  कोई  दिया  है ।
उसको ऐसा क्यूँ लगता है ,
यही जिन्दगी यही मज़ा है ।

उसने मन के हर कोने में ,
इतना दर्द दबा रखा है ।
सोचा करता है वो दिल में ,
यही मुहब्बत यही वफा है ।

बहुत से शिकवे लिए हुए वो ,
न जाने क्यूँ ऐसे जी रहा है ।
पूछे कोई तो कहता है सबसे ,
उसे किसी से कहाँ गिला है ।

उसे तो बस इतनी सी खबर है,
जुदा है किस्मत जहाँ से उसकी ।
 नही समझ पाया अबतलक की ,
वो  खूबियों में भी तो जुदा है ।

तलाश में है वो रौशनी की ,
अँधेरे में गुमसुम जी रहा है ।
उसे यकीं कोई दिलाये कैसे ,
उसी में सूरज भी इक छिपा है ।

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