Tuesday, November 27, 2012

सच बोलने से शायद तू नफरत करे मुझसे

सच बोलने से शायद तू ,नफरत करे मुझसे ,
पर झूठ बोलने से भला किसका कब हुआ ।

दिल तोड़ने की यूं  तो  , आदत नही मेरी ,
तुमको ही गिला होता सच क्यूँ छुपा लिया ।

मेरी खता बस ये थी , की मै  खेल में रहा ,
और तुमने मेरे खेल को दिल से लगा लिया ।

माना  की  तू  सदमे  में  है ,   मेरे गुनाह से ,
तुमको क्या लगा मुझको कोई गम नही हुआ ।

आदत नही मेरी  ,  की सबसे हाले दिल कहूँ ,
तूने कहा  गम  सबसे और  मैंने छुपा लिया ।

तेरे आंसुओं ने मुझको , कुछ इस कदर  तोडा ,
तू  बद्दुआ  देता  है   ,  मै  देता  हूँ  दुआ ।

जो हो गया वो  , बिता हुआ ला न सकूंगा ,
पर तू बता मेरे लिए कोई सोंची है सज़ा ।

इन्सान हूँ  ,  इंसानियत रखी है बचा के ,
बतला कहाँ से लाऊ मै  तेरे लिए खुशियाँ ।

मुजरिम तेरी खुशियों का  ,  कूचे में है तेरे ,
माफ़ी तू  दे गुनाह की , चाहे  सज़ा सुना ।

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