Sunday, November 25, 2012

खेल मुहब्बत का

इक दांव मै चलूंगी इक दांव तुम चलो ,
है खेल मुहब्बत का कोई जंग नही है ।

तुम हो बड़े माहिर इस खेल में हमदम ,
मै  इस तरफ तन्हा कोई संग नही है ।

ये क्या की अपनी जीत पे मगरूर हो गये ,
जाओ जी  तुम्हे खेलने का ढंग नही है ।

इस खेल ने यारा तुझे कितना बदल दिया ,
अब प्यार का चेहरे पे कोई रंग नही है ।

मत सोंचना आँखों में हैं ये हार  के आंसू ,
तुम जीते हो इस बात से हम दंग नही है ।

तुम क्यूँ हँसे अब जाओ मुझे खेलना नही ,
तुम भूल गये  प्यार है  ये जंग नही है ।

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