Friday, November 23, 2012

मै हार गई वो जीत गया

मै हार गई वो जीत गया ,बस इतना ही अब याद रहा ।
मै हार के भी खुशहाल हुई ,वो जीत के भी बरबाद रहा ।

डूब गया मझधार में वो  , अपना  दुखड़ा  रोते - रोते ,
कभी नही समझा वो नादाँ , किस्मत उसके हाथ रहा ।

सोंच-सोंच के जला किया, कोई रहबर नही हुआ उसका ,
पूछा नही कभी दिल से , क्या वो अपने भी साथ रहा ।

जाल प्यार का रचा गया  ,  और सपनों के दानें डाले ,
फंस के चिड़िया बेचैन हुई ,तब चैन से वो सैयाद रहा ।

उसने नफरत के किस्सों में , किस्सा अपना लिख डाला ,
फिर से कोई दिल टूटा  , और फिर से गम आबाद रहा ।

हम ढूंढा किये उसकी खुशियाँ , इस दुनियां के वीराने में ,
वही  चैन  चुराकर  लोगों  का , बेचैनी  में  हर  रात रहा ।

अब जाके हमको पता चला  , क्यूँ उसकी रब ने नही सुनी ,
वो प्रेम का धागा कच्चा था , तब ही खाली फरियाद रहा ।

ले जश्न मना तू जीत गया , मै चली तुम्हारी महफिल से ,
अब क्या गम तू अच्छा या बुरा , मेरे जाने के बाद रहा ।

6 comments:

  1. yashoda agrawalजी आपका बहुत बहुत आभार जो आपने इतना महत्व दिया।मैं अब इस लिंक से जुड़ चुकी हूँ । धन्यवाद

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  2. वाह...
    बहुत सुन्दर ग़ज़ल...
    उसने नफरत के किस्सों में , किस्सा अपना लिख डाला ,
    फिर से कोई दिल टूटा , और फिर से गम आबाद रहा ।

    आपके blog तक आना सार्थक हुआ...

    अनु

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  3. ले जश्न मना तू जीत गया , मै चली तुम्हारी महफिल से ,
    अब क्या गम तू अच्छा या बुरा , मेरे जाने के बाद रहा ।
    ..जाने की बाद रह ही क्या जाता है!!
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..

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  4. bhut bhut shukriya aapka कविता रावत

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  5. वाह...
    बहुत सुन्दर
    अब जाके हमको पता चला,
    क्यूँ उसकी रब ने नही सुनी,
    वो प्रेम का धागा कच्चा था.

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