Wednesday, October 10, 2012

वो रात ऐसी थी

रात  भर  जलते  रहे ,  वो  रात  ऐसी  थी ,
खाब  में  चलते  रहे  कुछ  बात  ऐसी  थी ।

सो रही थी चांदनी जब चाँद के आगोश में ,
थम गया था वक्त , वो मुलाकात ऐसी थी।

शर्म से सिमटी  धरा  मुस्कुराई रात भर ,
चाँद  तारों  से  सजी  बारात  ऐसी  थी ।

कहने को एहसास लब थरथराते रह गये ,
हो  नही  पाए  बयाँ  जज्बात  ऐसी  थी ।

जिस तरफ नजरें उठी प्यार का दीदार था ,
हो  रही  वो  प्यार  की  बरसात  ऐसी  थी ।

लड़ने को तूफान से भी भर रहा था हौशला ,
थामी  थी  जो  हाथ  में  वो  हाथ ऐसी थी ।

घोर  सन्नाटे  में छुपके  ,थे नजारे सो गये ,
दो  नजर  जागी  रहीं   हालात  ऐसी  थी ।

मन्नतें मांगी थी कई जन्म तक इश्क ने ,
तब  कहीं  पाई  हो  , वो सौगात ऐसी थी ।
 

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