बड़ी अजीब है ये दिल की दास्ताँ यारों ,
मैं कहती भी रही और छुपाती भी रही ।
एक ही बात जो दिल की कभी शुकून बनी ,
वही बात फिर दिल को जलाती भी रही ।
जिस तमन्ना में जिन्दगी गुजरी सारी ,
उसी से दामन मैं अपना छुड़ाती भी रही ।
अपने हाथों से जिन खाबों को तोडा किये ,
फिर वही टूटे हुए तार मिलाती भी रही ।
कभी तो सह लिए तूफान के बवंडर भी ,
जरा सी बात पे कभी आंसू बहती भी रही ।
कभी धिक्कारा इस दिल को नादानी पे ,
कभी टूटा दिल तो ढाढस बंधाती भी रही ।
खताएं जो भी की सब इस दिल ने ही की ,
अपने दिल को कुसूरवार ठहराती भी रही ।
ये जताती भी रही दिल है बेईमान बड़ा ,
और इसकी बात में नादान मैं आती भी रही ।
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