Saturday, May 12, 2012

दुनियादारी

उसे आदत पड़ी कुछ इस तरह नुमाइश की ,
अपनी बदनीयती को ही शान बना रखा है |

बचा के रखना मुश्किल हुआ ईमान धरम ,
इसी ने इन्सान को  इन्सान बना रखा है |

किसी का दर्द देखते हैं  , तमाशे की तरह ,
मतलबीपन  ने  ,  बेजुबान  बना रखा है |

पाक सीरत पे   , पड़  गई मैलों की परत ,
झूठी  तारीफ से  , पहचान  बना  रखा है |

सिक्कों  से तौलते हैं ,  रोज ही जमीरों को ,
दौलती - रुतबे  ने  ,  गुमान  बना रखा  है |

पता होके  भी जिन्दगी  की ,  हर सच्चाई ,
जाने  कैसे  ये  ,  इत्मिनान  बना रखा है |

भूखे सोतें  हैं कई लोग  , रोज  सडकों  पर ,
किसीने  झुग्गी  पर  , मकान बना रखा है |

अब तो राहों में तन्हा हुआ चलना मुश्किल ,
भुखमरी  ने  , कई  शैतान  बना  रखा   है |

वो  खुश  हैं मार के हक  , कई  गरीबों  का ,
उन्हें  ऐय्याशी  ने  ,  बेईमान  बना रखा  है |

झूठी  तारीफ  क्या  कर दी  ,  चापलूसों  ने ,
उसने  जमीं  को , आसमान  बना  रखा  है |

छुपाके  रखते  हैं  सच्चाई को ,  तिजोरी  में ,
दिखाने  को  कई ,  अभियान  बना  रखा  है |

बातें  करते  है  सभाओं   में  संस्कारों  की ,
खुद   अश्लीलता  पे  , ध्यान  बना  रखा  है |

जहाँ बस खो गया है  , झूठी  दुनियादारी  में ,
सच्चे दिल को तो अब , पासान बना रखा है |

भूल बैठा  है  अब  इंसानियत ,  इंसा अपनी  ,
मन  के  शैतान  को  ,  भगवान बना रखा  है |

हमने तो दिल की इक दुनियां अलग बसाई है ,
इसी ने  जीना  बस  ,  आसान  बना रखा  है |

करें क्या बात जमाने से हम ,  मुहब्बत  की ,
इसने ही दोजख भी ,  गुलिस्तान बना रखा है |

No comments:

Post a Comment