Thursday, April 12, 2012

अजनबी

 ऐ अजनबी  , तुझसे कोई रिश्ता तो है ।
तू गैर है,पर मेरा तुझसे वास्ता क्यों है ।

चला आता है , बरबस मेरे तसव्वुर में ,
तू  मुझको अपनी ओर , खिचता क्यों है ।

क्यूँ हो रहा शामिल , मेरे वजूद में तू  ,
तू बार - बार मेरे दिल में , कौंधता क्यों है ।

क्या जबाब दूँ मैं, दिल के इन सवालों का,
दिले नादाँ , बातें उलझी  पूछता क्यों है  ।

कई बार कहा मन को ,  उसे जान तो ले,
बिना जाने ही तुझे , इतना सोचता क्यों है ।

कई कोशिश की, दफा दिल से तुझे करने की ,
पर मेरा अक्स ही आखिर में, रोकता क्यों है ।

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