Wednesday, April 25, 2012

ख़ुशी


खेवैया खड़ा रो रहा तट पे आके ,
 की तूफान नैया लिए जा रहा है ।
भटका हुआ पंक्षी डाली पे सोंचे ,
 हाय क्यूँ अँधेरा घना छा रहा है ।

जितना पतंगा है पर फरफराता ,
 और जाल में ही फंसा जा रहा है ।
छोटा सा दीपक खड़ा है अकेला ,
 हवाओं के डर से बुझा जा रहा है ।

हर एक की बस यही  है कहानी ,
 हर सार हमको ये समझा रहा है ।
सौ दिन में बस चार दिन हैं ख़ुशी के ,
 क्यूँ रोके उसको भी ठुकरा रहा है ।

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