Wednesday, April 11, 2012

'बे' ईमान

सजी थी मंडी इक , ईमान  बेचने के लिए ।
हम जरा बैठे  , खरीददार देखने के लिए ।

वो आये अपना रुतबा , कुछ यूँ दिखाते हुए ।
अपनी मक्कारियां , मुस्कान से छुपाते हुए ।

ऐसी अकड की  हर बात पे  , एहसान हुआ ।
इनके आगे तो  इन्सान , इक सामान हुआ ।

वो तौलने लगे आँखों से  , शख्सियत सबकी ।
हमने तो बोल दिया , ईमान चीज है रब की ।

वो झुंझला उठे , और हुँकार सरे आम भरा ।
चीख के बोले वो , तेरे जैसा ही बेनाम मरा ।

लगे तारीफ में अपनी वो , कसीदा पढ़ने ।
झूठ की मिटटी से , सच  की कृतियाँ गढ़ने ।

सर से ऊपर हुआ पानी और हमने ये कहा ।
ऐ खरीददार , मेरे ईमान का भी दाम लगा ।

उसने दौलत सोहरत का फिर बखान किया ।
 वो' बे ' ईमान है , मैंने भी उसे जान लिया ।

मैंने इक शर्त रखा , सुन तुझे स्वीकार है तो ।
ले मै बेमोल तेरा ,  गर तू ईमानदार है तो ।

वो सकपका के भागा, और अपनी राह लिया ।
हँसी आई मुझे , मैंने फिर इक सलाह दिया ।

बिना  ईमान के इन्सान ,  एक लाश है बस ।
तू कब का मर चुका , बांकी तेरी साँस है बस ।




No comments:

Post a Comment